Wednesday, 8 June 2016

आज ही के दिन बिहार में हुआ था देश का सबसे बड़ा रेल हादसा, हादसे को लेकर कई कहानियां है..

Sandip
इसे भुल कहें या फिर कुछ ओर,देश के सबसे बड़े रेल दुर्धटना के 35 वें बरसी पर केन्द्र,राज्य या फिर स्थानिय नेताओं ने एक छोटा सा भी कार्यक्रम कर श्रद्वांजली देना मुनासीब नही समझा वही रेल प्रशासन ने भी उन हजारों मृतको के आत्मा के शांति के लिये ना तो दो मिनट का मौन रखा ना ही दो फुल चढ़ाकर याद किया। इतना ही नही स्थानिय मिडिया जो इस रेलखंड पर अगर एक बकड़ी का बच्ची भी कट जाय तो उसे प्रथम पृष्थ का खबर बना कर अपना पीठ थपथपाती है ने भी उन मृतको की याद में एक सिंगल कालम की भी खबर देकर याद नही किया।

यादों के झरोखो में यह दुर्धटना
तारीख थी 6 जून 1981. मानसी से सहरसा की तरफ बागमती नदी के पुल पर ट्रेन दौड़ी चली जा रही थी. मानसून चल रहा था. जबरदस्त बारिश हुई थी. पटरियों पर फिसलन थी. बागमती नदी भी लबालब भरी हुई थी. 9 डिब्बे की ट्रेन में हजारों लोग सफर कर रहे थे. अचानक ड्राइवर ने ब्रेक मारा. 9 में से 7 डिब्बे ट्रेन से अलग हुए और पुल तोड़ते हुए नदी में समा गए. लोग मदद के लिए गुहार करते रहे. पर मदद के लिए घंटों तक कोई नहीं आया. जब लोग बचाने आए, तब तक सैकड़ों लोग काल के गाल में जा चुके थे.

नदी में पड़ी ट्रेन

1981 वो साल था जब भारत में ट्रेन में चढ़ते ही मौत लोगों का पीछा करने लगती थी. जनवरी से सितम्बर के बीच 8 महीनों में ही 526 ट्रेन एक्सीडेंट हो चुके थे. रेल मंत्री केदारनाथ पांडे की जान सांसत में फंसी हुई थी. खचाखच भरी 416 डाउन ट्रेन 6 जून को नदी में समा गई. भारत में तो वैसे भी ट्रेन जितने लोगों के लिए बनाई गई होती है, उससे तीन गुना ज्यादा लोग उसमें सफर करते हैं. बहुत सारे लोग बिना टिकट के भी सफर करते हैं. इसलिए कहा नहीं जा सकता कि ट्रेन में कितने लोग रहे होंगे.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 500 लोग ही ट्रेन में थे. लेकिन बाद में रेलवे के दो अधिकारियों ने पीटीआई से बात के दौरान कहा था कि मरने वालों की संख्या 1000 से 3000 के बीच हो सकती है. यानी एक्सीडेंट के वक्त ट्रेन में हजारों लोग थे.
हर गोताखोर को एक लाश निकालने पर कुछ पैसे देने को कहा गया था. पर गोतोखोरों ने लाश निकालने के बदले में पैसे लेने से मना कर दिया. भारतीय नौसेना ने तो पानी के अंदर विस्फोटकों का इस्तेमाल करके 500 लाशें निकालने की योजना बनाई थी. पर ऐसा हुआ नहीं.

गोताखोरों ने लाशें ढूंढने के लिए हफ्तों गोते लगाए. 286 लाशें निकाल पाए. 300 से ज्यादा लोगों का आज तक कोई पता नहीं चला. आंकड़ों के हिसाब से इस रेल दुर्घटना में करीब 800 लोगों की मौत हुई. सैकड़ों लोग नदी में बह गए. ये भारत का अब तक का सबसे बड़ा ट्रेन एक्सीडेंट है।

कैसे हुआ था एक्सीडेंट?

ये एक्सीडेंट कैसे हुआ? उसकी असली वजह का आज तक पता नहीं चला है. इसके लिए दो थ्योरी दी गईं. पहली ये थी कि ट्रैक पर आगे भैंस खड़ी थी. (कुछ लोग गाय भी कहते हैं.) उसे बचाने के लिए ड्राइवर ने ब्रेक मारी. पटरियों पर फिसलन थी. गाड़ी पटरी से उतरी, पुल तोड़ते हुए 7 डिब्बे नदी में चले गए.

दूसरी थ्योरी ये थी कि तूफान आ गया. तेज हवा के झोंके और साथ में पानी भी. पानी खिड़कियों से अंदर जाने लगा तो सबने खिड़कियां बंद कर लीं. तो जब पुल पर से ट्रेन गुजर रही थी तो उस पर सीधी तूफानी हवा लग रही थी. हवा क्रॉस करने के सारे रास्ते बंद थे. भारी दबाव के चलते ट्रेन पलट कर पुल तोड़ते हुए नीचे चली गई.

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