उसकी कलाई पर काले डायल वाली टाइटन घडी बंधी थी और हाथ में सैमसंग का पुराना सा फ़ोन था. दूसरे हाथ से उसने मेज पर पड़ी डायरी उठायी और बोला..दोस्त इज़ाज़त दो कल तडके सुबह की फ्लाइट है. सुबह उसकी दिशा किस ओर होगी न मैंने उससे पूछा ..न हमेशा की तरह उसने बताया. ये कहकर, वो लोधी रोड के कॉफ़ी कैफ़े डे से निकला और सीधे एक सफ़ेद इंडिका कार का पिछला दरवाज़ा खोलकर अन्दर बैठ गया. पल भर में कार गायब हो गयी. तकरीबन ४०-४२ साल के इस अफसर से कई महीने बाद मेरी मुलाक़ात हुई थी. वो आई बी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) में ओपेरेशनस सेल में है. कुछ दिन पहले ही काठमांडू जाकर उसने दो आतंकियों को अगवा करके एक निर्जन पहाड़ी से बोरे में बंद उनकी लाशें एक गहरी खायी में लुढ़का दी थी. उसकी टीम एक ऐसा ही ओपरेशन ढाका में कर चुकी है. बैंकाक में तो उसने शेर की मांद में हाथ डालकर फेक करेंसी के एक बड़े गिरोह को धरा था. उसके ज्यादातर कारनामे खुद उसी की तरह गुमनाम है. और गुमनामी के इस जांबाज़ खेल में वो अकेला नही है. आई बी, रॉ और मिलिट्री इंटेलिजेंस में ऐसे कई टाइगर हैं जिन्होंने भरी जवानी में देश को जीवन दे दिया हैं. 20 साल से ज्यादा के अपने कैरियर में रियल लाइफ के कई ऐसे नायकों को मै नजदीक से जानता हूँ. उनके हाथों पर गोलियों के बंद घाव से लेकर चेहरे पर कटे हुए निशान पर मैंने देश भक्ती के सबूत देखे है. वो नेता, फ़िल्मी हीरो, टीवी एंकर, आईपीएल के क्रिकेटरों से बहुत बड़े हैं. वाकई बड़े हैं....क्यूंकि उन्हें नाम की परवाह नही है. वो शोहरत से जुदा है. वो सेल्फी लेना नही जानते. वो फेसबुक पर नही है. उन्होंने अपने हेरोइस्म को कभी ट्वीट नही किया है. महज 60-70 हज़ार की सैलरी उनके साहस और वीरता के लिए न के बराबर रकम है. लेकिन उनकी इस वीर गाथा में जब मै उनके घर और परिवार की दिक्कतों को सुनता हूँ तो बड़ी पीड़ा होती है. जरा सोचिये पापा घाटी के जंगलों में आतंकियों के सेल से जूझ रहे हों और घर पर बेटी को कॉलेज में एडमिशन न मिल पा रहा हो. अगर यही सच है तो फिर वन्दे मातरम का मतलब क्या है ? मित्रों , मै चाहता हूँ कि हमारी ख़ुफ़िया एजेंसियों के गुमनाम नायक जो जान हथेली पर लेकर चल रहे हैं उनके लिए सरकार एक अलग फंड बनाये. रिटायर होने के बाद पेंशन के अलावा इस फंड से इन्हें मेरिट के आधार पर देश इनाम दे और इनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया जाय. ये देश के असली हीरो हैं.. असली भगत सिंह हैं...इन्हें निजी उलझनों और मुसीबतों से हमे मुक्त करना होगा ...इनका परिवार हमारा परिवार होना चाहिए ...इनकी चिंताएं हमारी चिंताए होनी चाहिए. ये नायक अगर रहेंगे तो तमाम विसंगतियों और सामजिक विघटन के बाद भी देश पर कभी आंच नही आ सकती है. अगर आप इनके दर्द में शामिल होना चाहते हैं तो एक चिट्ठी प्रधानमन्त्री को इनके लिए ज़रूर लिखेयेगा.
Bilkul sahi baat Likhe hai Sanddep ji.
ReplyDeleteरामायण के रहस्य👉 RAMAYAN KE RAHSYA
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